A story section



उस लड़के से मिलने से पहले मेरे जीवन में कुछ खोखलापन सा था, एक अजीब सा खालीपन था.
जिसे आजतक मेरे अलावा किसी ने महसूस  नहीं किया था. क्योंकि मैं स्वभाव
से बहुत चंचल थी, इस कारण मैं कॉलेज और घर में लोगों से घिरी रहती थी. इसके बावजूद कि मैं
बहुत बोलती थी, मेरे जीवन का एक दूसरा पहलु भी था. और जीवन के उस हिस्से में आने की इजाजत
मैंने किसी को नहीं दी थी. बाहर से खुश दिखाई देने वाली लड़की जिसे लोग हर पल हसंते-खिलखिलाते
देखते थे, उसके बारे में ये अंदाजा तक नहीं लगाया जा सकता था कि वो अंदर से इतनी अकेली होगी,
ढेर सारे दर्द अपने भीतर समेटे हुए होगी. मैं खुश होने का दिखावा तो करती थी,
लेकिन अंदर से खुश नहीं थी. बस एक मुखौटा पहनकर जिंदगी बिताये जा रही थी.

मैंने अपने आस-पास एक घेरा सा बना लिया था.
कोई भी मेरे द्वारा बनाए गए दायरों को नहीं तोड़ सकता था.
मुझे इस बात पर यकिन नहीं हो रहा था कि वो लड़का मेरे बनाए गए दायरों को तोड़कर मेरी सोच में
समाता चला जा रहा है. शुरू-शुरू में उससे बात करना महज एक औपचारिकता थी. सहपाठी होने की
वजह से मेरी और उसकी अक्सर थोड़ी-बहुत बातचीत होती रहती थी. लेकिन मुझे इस बात का इल्म
तक नहीं था कि वो मुझे मन ही मन पसंद करता था, मुझसे दीवानों की तरह प्यार करता था.
ये अलग बात थी कि आज तक उसने इस बात को मेरे सामने कभी जाहिर नहीं होने दिया था.
मुझे छोटी से छोटी तकलीफ होने पर, उसे मुझसे ज्यादा दर्द होता था. कोई ऐसे भी किसी को चाह
सकता है यकीन करने में बहुत वक्त लगा. लेकिन समय के साथ मुझे इस बात का एहसास  हो गया कि
ये लड़का मेरी चिंता करता है, मेरा ख्याल रखता है. उसके प्यार में पागलपन था.

मेरी ख़ुशी के लिए वो कुछ भी कर देता था. उस लड़के ने  बिना इस बात का जिक्र किये कि
उसे मुझसे बातें करना अच्छा  लगता है, मेरे साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है, बड़ी ही चालाकी से
मुझसे दोस्ती के लिए पूछा. उस दिन हम दोनों कॉलेज जल्दी आ गए थे और क्लास  में कोई नहीं था-
‘’ उसने पूछा क्या मैं तुम्हारा हाथ पकड़ सकता हूँ ‘’.
पहले तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि आज इस लड़के को क्या हो गया है ये इस तरह की बातें क्यों कर रहा है.
लेकिन मुझे उसपर पूरा  भरोसा था कि वो कोई गलत काम नहीं करेगा. उसकी आँखों में सच्चाई थी
और ये बात मैं साफ़-साफ़ देख सकती थी. उसने इतनी Honestly मेरा हाथ माँगा  कि मैं उसे मना
नहीं कर पाई और मैंने उसे अपना हाथ दे दिया. उसने मेरा हाथ अपने हाथों में लिया और कहा, क्या
तुम मेरी दोस्त बनोगी तुम मुझे अच्छी लगती हो और मैं तुममें एक अच्छा दोस्त देखता हूँ, अच्छा
इंसान देखता हूँ और मैं चाहता हूँ कि मैं जिंदगी भर तुम्हारा दोस्त बनकर तुम्हारे साथ रहूँ.’’
उसने इतनी ईमानदारी से अपनी इस बात को मेरे सामने रखा कि मैं ना नहीं कर पाई और मैंने हाँ कर दिया.
उस दिन उसने बस इतना हीं कहा और चला गया. मुझसे दोस्ती करने की खुशी मैं साफ़-साफ़ उसके चेहरे पर देख सकती थी. मुझे ये सोच कर दिन भर बहुत हंसी आ रही कि किस तरह से डरते-डरते उसने मेरा हाथ पकड़ा था.
मैं अच्छी तरह से उसकी कांपती हाथों को महसूस कर सकती थी. और पूरे दिन उस वाकये को याद करके मुझे हंसी आ रही थी, मैं अकेले में भी बिना बात के हँसे जा रही थी.

मेरे आस-पास रहने वाले लोग ये देख कर समझ गए थे कि जरुर कोई बात है.
इस लड़की को कुछ तो होने लगा है. अब हम दोनो दोस्त बन गए थे और उसने किसी भी वक्त
फोन पर बात करने की इजाजत मांग ली थी. अब उससे बात करना मुझे भी अच्छा लगने लगा
था, मेरे अंदर क्या चल रहा था मुझे समझ में नहीं आ रहा था. क्यों मैं उसके फोन का इंतज़ार
करने लगी थी ? न जाने क्यों मैं उसकी ओर खिंची चली जा रही थी ?
क्यों अब हर पल मेरा दिल उसका साथ चाहता था, न जाने क्यों मैं अब खुली आँखों से भी उसी
के सपने देखने लगी थी. क्यों मैं अब दिन-रात उसी से बातें करना चाहती थी. अब  उससे अपनी
बातें share करना मुझे अच्छा लगने लगा था. जब  भी मैं उदास होती किसी को पता चले ना
चले उसे पता चल जाता था, चाहे वह मेरे सामने हो या न हो. और वह मेरी उदासी को दूर करने
का हर संभव प्रयास करता था. मुझे खुद पर गर्व होने लगा था.

एक दिन उसने मुझसे I Love You कहा, मुझे वक्त लगा… लेकिन मैंने भी अपने प्यार का इजहार
कर दिया. मुझे भी अपनी जिंदगी में प्यार का इंतजार था. मैं भी प्यार को हर पल जीना चाहती थी,
आगे क्या होगा इसकी चिंता न उसे थी, न मुझे. हम दोनों का सारा समय एक-दूसरे के साथ बीतने लगा.
हम दोनों एक-दूसरे का साथ पाकर मानो पूरी दुनिया से कट गए थे. मैं कह सकती हूँ, उसके साथ
बिताये गए एक-एक पल मुझे हमेशा याद रहेंगे. मैं कितनी खूबसूरत थी, ये उसने हीं बताया था.
मेरी जुल्फें उसे बहुत खूबसूरत लगती थी. मेरी कमियाँ भी उसे मेरी खूबी लगती थी. मेरे हर जन्मदिन पर
मुझसे ज्यादा खुश होना, मेरे ऊपर हजारों रुपए मना करने के बावजूद खर्च कर देना, वो दीवाना था मेरा.
उसने भी मुझे अपना दीवाना बना लिया था. बाइक पर अक्सर घूमने निकल जाना, कॉलेज बंक करके
फिल्म देखने जाना, ये सब हमें अच्छा लगने लगा था. उसकी पूरी दुनिया बन गई थी मैं, मेरी पूजा करता था वो.
मेरे लिए किसी से पंगा लेने से पहले बिल्कुल नहीं सोचता था वो. दिन तेजी से बीतने लगे, हम दोनों
दुनिया को भूल चुके थे. प्यार के उस दौर ने हम दोनों को भीतर से बदल दिया था. हमने प्यार की
ढ़ेरों कसमें खाई, और ढ़ेरों वादे किए. हम दोनों प्यार के इस दौर को जी भर कर जी लेना चाहते थे.

वक्त ने करवट लिया, मेरे पिताजी ने 20-21 साल की कम उम्र में हीं मेरी शादी पक्की कर दी.
मुझे अब उसे या अपने परिवार को चुनना था. मैंने कभी सोचा हीं नहीं था कि जल्द हीं मेरे सामने
ये मजबूरी आ जाएगी. अंदर से मेरा हाल भी बेहाल था, लेकिन वह मुझसे ज्यादा बेहाल था.
वह किसी भी हद तक जाने को तैयार था, मेरा साथ पाने के लिए. लेकिन मैं जानती थी,
कि अगर मैं घर से भाग जाती हूँ तो मेरे घर वालों का जीना मुश्किल हो जाएगा. कड़े मन से मैंने
उसके साथ जाने से इंकार कर दिया. वह हर दिन सैंकड़ो बार कोशिश करता कि मेरे फैसले को बदल पाए,
लेकिन मैं नहीं मानी. मेरी शादी हो गई, हर कोई खुश था…. उस लड़के के सिवा. आखिर वो खुश होता
भी तो कैसे, उसने मुझे अपनी पूरी दुनिया जो बना लिया था. गलती मेरी हीं थी, मुझे उसे पहले हीं रोक
देना चाहिए था. जब वो अपना सबकुछ मुझ पर लूटा रहा था. मुझे उसे दुःख देने का कोई हक नहीं था.
अपनी शादी के बहुत महीनों के बाद मेरी उससे मुलाकात हुई.  उसने अपना हाल बेहाल कर लिया था.
ऐसा लग रहा था मानो उसमें कोई जान हीं नहीं है, हंसना तो वह भूल हीं गया अ.
उसने कहा कि वो मुझसे मिलने से पहले भी अकेला था और मेरे जाने के बाद फिर अकेला है.

वो कहता है, कि प्यार की लड़ाई तो वो हार गया है, पर प्यार की जंग जरुर जीतेगा वो.
वो कहता है कि, तुम भले मेरा साथ न दे सको, मेरा प्यार तो मेरे साथ है न.
मेरे प्यार के सहारे उसने जिंदगी में आगे बढ़ने की ठानी है. उस दिन उसने कहा कि उसका
प्यार सच्चा है, इसलिए उसका प्यार कभी उसकी कमजोरी नहीं बनेगा. मुझे अपनी गलती
का एहसास है. क्योंकि मेरा प्यार मुझे ज्यादा दुखी है, मैंने उसकी जिंदगी को बर्बाद कर दिया है.
मैं उस दीवाने के प्यार को सलाम करती हूँ, जिसके पास न मेरा तन है, न मेरा समय न मेरा
जीवन पर अब भी वो मुझसे प्यार करता है.

पर उस दिन उसने मुझसे झूठ बोला था, शायद वह बुरी तरह टूट चुका था. जबकि उसने खुद को बहुत
बहादुर दिखाने की कोशिश की थी. मुझे लगा था कि सबकुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन सबकुछ बुरा होता चला गया.
वह लोगों से दूर होता चला गया था, और लोग उससे दूर होते चले गए थे. बुरे लोगों से दोस्ती कर ली थी उसने.
वह शराब, सिगरेट और ड्रग्स का आदि हो गया था. वह बुरी तरह डिप्रेशन का शिकार हो गया था.
और अंत में एक दिन उसने आत्महत्या कर ली. ये था इस कहानी का अंत. मैं न तो जीते जी उसके साथ
रह पाई न उसके अंतिम समय में मैं उसका साथ निभा पाई. मैं हमेशा खुद को गुनाहगार रहूंगी, उस लड़के
की जिसने मुझे इतना प्यार किया, जितना कोई नहीं
कर सकता है. शायद मैं उसकी जिंदगी में नहीं आती, तो आज सबकुछ अच्छा होता.
शायद वो आज जिंदा और खुश होता.
 हम उस दौर में जी रहे हैं हम जहाँ दुश्मन तो आसानी से पहचाने जाते हैं.
लेकिन सच्चे या झूठे प्यार को पहचानना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा है.

Moral message of this love story :
प्यार कीजिए, लेकिन सोच समझकर. अंधे प्यार का अंत हमेशा बुरा होता है.
अगर आप किसी का साथ जिंदगी भर नहीं दे सकते हैं, तो पहले हीं उसके प्रेम प्रस्ताव को न कह दें.
प्यार में अपने कदम तभी आगे बढ़ाइए, जब आप दुनिया के सामने इसे स्वीकार कर सकें.
यह मौलिक कहानी आपको कैसी लगी, यह हमें जरुर बताएँ.
आपके सलाहों और सुझावों का हमें इंतजार रहेगा.

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